यह जन विद्रोह का नारा है !
कब तक ये अत्याचार सहे ?
सत्ता का तिरस्कार सहे ?
अब उठो कि वक़्त हमारा है,
सम्पत्ति का मालिक सर्वहारा है!
जन क्रांति की मशाल जले,
जनता का हर मलाल जले!
जो जोते जमीन उसी की हो,
अपना भाग्य विधाता मजदुर ही हो!
अबके होली क्रांति से मने ,
रक्त रंग बारूद गुलाल बने!
जनयुद्ध की यही आवाज़ है,
बंदूक ही हमारी मित्र आज है !
कब तक ये अत्याचार सहे ?
सत्ता का तिरस्कार सहे ?
अब उठो कि वक़्त हमारा है,
सम्पत्ति का मालिक सर्वहारा है!
जन क्रांति की मशाल जले,
जनता का हर मलाल जले!
जो जोते जमीन उसी की हो,
अपना भाग्य विधाता मजदुर ही हो!
अबके होली क्रांति से मने ,
रक्त रंग बारूद गुलाल बने!
जनयुद्ध की यही आवाज़ है,
बंदूक ही हमारी मित्र आज है !
1 comments:
bhout hi badiya koshish
aaj kaafi samay ke baad hindi ki kavita padhi hai, aur mann isse prafullit hua hai
likhna jaari rahe
aye-jee
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