बुद्ध का अट्टहास

Friday, June 13, 2008


गाँधी के भाषण बहुत सुने,
अब बुद्ध का अट्टहास सुनो !
बहुत हुई पंचशील की चालें,
अब गौरव की बात करो !
देखो इतिहास दिखा रहा है,
अपनी बातें उनकी घातें !
हैं संगीनों के साए तले,
क्या गीत प्रेम के गाए जाते ?
भारतभूमि धधक रही है,
गूँज रहा है आर्तनाद!
हे मृत्युंजय अब तो जागो,
दूर करो सारा विषाद!
तुम तो भाग्य विधाता हो,
दिखला दो उनकी औकात !
हुणों को भी धुल चटाओ तुम,
इन मलेच्छों की क्या बिसात?
भारत वर्ष अखंड रहेगा,
बोलो डंके की चोट पे !
शांति अगर लानी है तो,
लाओ बंदूक की नोक पे !
सोये हो तुम हजार साल,
अब निद्रा का त्याग करो !
भारत माँ पुकार रही है,
अब सर्वस्व बलिदान करो !
यह आह्वाहन है समय का,
यह युद्ध की ललकार है !
पूरे हुए प्रतीक्षा के पल,
क्रांति दिवस आज है !


This poem was written by me after the Pokharan Nuclear tests. This is a call to the Indian to rise and start the struggle, with violence as the weapon this time. Non- Violence is relevant when the adversary is a human. When you are fighting then you have to be the Evil with Evil. The poem draws its inspiration from Jayshankar Prasad's "तुम हमारी चोटियों की बर्फ को यूँ मत कुरेदो " written after the war of 1962. The phrase "बुद्ध का अट्टहास " may make you remember that news of the blasts was conveyed as, "Buddha has smiled !"

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