Looking at the great battle of Indian democracy, how true it feels : Aarambh hai Prachand!
Enjoy a masterpiece by a gifted poet , Piyush Mishra....
आज जँग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन बान शान या कि जान का हो दान आज
इक धनुष के बाण पे उतार दो
मन करे सो प्राण दे, जो मन करे सो प्राण ले
वही तो एक सर्वशक्तिमान है
विश्व की पुकार है ये भागवत का सार है
युद्ध ही वीर का प्रमाण है
कौरवो की भीड हो या, पान्डवो का नीड हो
जीत की हवस नहीं
किसी पे कोई वश नहीं
क्या ज़िन्दगी है ठोकरों पे मार दो
मौत अंत है नहीं
तो मौत से भी क्यों डरें
आरम्भ है प्रचंड बोले मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो
आन बान शान या की आन का हो दान
आज ईक धनुष के बाण पे उतार दो
आरम्भ है प्रचंड ...
या कि शौर्य का चुनाव
या कि हार का वो घाव
तुम ये सोच लो ...
या कि पूरे भाल पर
लाल लाल ये गुलाल
तुम ये सोच लो
रंग केसरी हो या
मृदंग केसरी हो या
कि केसरी हो ताल
तुम ये सोच लो
ज़िन्दगी हो प्रेम गीत
उस कवि को आ तुम नकार दो
भीगती रगों में आज
आग कि लपट को तुम उतार दो
आरम्भ है प्रचंड ....
To get the feel you can listen to the song here : http://www.youtube.com/watch?v=S3yuxGcAghI&feature=related
If you haven't watched Gulaal yet , watch it !
Good cinema should be encouraged.